PC: saamtv
एक समय था जब पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही थी। लेकिन उस समय सबका ध्यान मुख्यतः रोकथाम, उपचार और टीकों पर था। लेकिन अब, इस महामारी के कुछ साल बाद, वैज्ञानिकों को इस वायरस के कुछ ऐसे प्रभाव दिखाई देने लगे हैं जो चौंकाने वाले हैं।
एक नए अध्ययन में पता चला है कि यह वायरस न केवल संक्रमित व्यक्ति को प्रभावित करता है, बल्कि उनके बच्चों, यानी अगली पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है। हैरानी की बात यह है कि यह प्रभाव गर्भावस्था से पहले संक्रमण होने पर भी हो सकता है।
क्या किया गया शोध?
ऑस्ट्रेलिया के फ्लोरी इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस एंड मेंटल हेल्थ में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 संक्रमण पुरुषों के शुक्राणुओं में ऐसे बदलाव ला सकता है जो बच्चों के मस्तिष्क के विकास और व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं। यह शोध प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका 'नेचर कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित हुआ है। अब देखते हैं कि यह शोध वास्तव में क्या कहता है।
फ्लोरी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने चूहों पर यह अध्ययन किया। उन्होंने पहले कुछ नर चूहों को SARS-CoV-2 वायरस से संक्रमित किया। फिर उन्हें पूरी तरह से ठीक होने दिया गया। जब ये नर चूहे पूरी तरह स्वस्थ हो गए, तो उनका प्रजनन स्वस्थ मादा चूहों के साथ कराया गया।
इस प्रयोग से क्या पता चला?
प्रयोग में पाया गया कि पहले संक्रमित हो चुके नर चूहों की संतानों में अन्य सामान्य चूहों की संतानों की तुलना में अधिक तनावपूर्ण व्यवहार देखा गया। उल्लेखनीय रूप से, मादा संतानों में तनाव से संबंधित जीन में बड़े परिवर्तन देखे गए। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि मस्तिष्क के एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाग, जिसे 'हिप्पोकैम्पस' कहा जाता है, में जीन प्रसंस्करण में भी बड़े परिवर्तन हुए। हिप्पोकैम्पस मस्तिष्क का वह भाग है जो हमारी भावनाओं और मनोदशा को नियंत्रित करता है।
अब प्रश्न उठता है कि यह प्रभाव वास्तव में क्यों और कैसे होता है? शोधकर्ताओं ने पाया कि कोविड-19 संक्रमण के बाद, पुरुषों के शुक्राणुओं में आरएनए, विशेष रूप से नॉन-कोडिंग आरएनए, बदल जाता है। नॉन-कोडिंग आरएनए ऐसे अणु होते हैं जो डीएनए से सीधे प्रोटीन नहीं बनाते, बल्कि यह नियंत्रित करते हैं कि कौन से जीन 'चालू' हैं और कौन से 'बंद'।
अर्थात, ये आरएनए तय करते हैं कि शरीर में कौन से जीन सक्रिय हैं और कौन से नहीं। ये जीन शरीर के विकास और व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। इसलिए जब शुक्राणुओं में ये आरएनए बदलते हैं, तो इसका सीधा असर अगली पीढ़ी के मस्तिष्क के विकास और व्यवहार पर पड़ सकता है। इसे ही वैज्ञानिक भाषा में 'एपिजेनेटिक परिवर्तन' कहते हैं।
यह मनुष्यों को कैसे प्रभावित करता है?
अब, यह सब सुनने के बाद, सबसे अहम सवाल यह है कि इसका मनुष्यों पर क्या असर हो सकता है? इस अध्ययन का अगला चरण मनुष्यों में इसका अध्ययन करना है। यानी, कोविड-19 से ठीक हो चुके पुरुषों के शुक्राणुओं की जाँच करके यह देखना ज़रूरी है कि उनके बच्चों में कोई मानसिक या व्यवहारिक बदलाव तो नहीं आ रहे हैं। अगर यही प्रक्रिया मनुष्यों में भी हो रही है, तो इसका असर लाखों परिवारों पर पड़ सकता है, क्योंकि दुनिया भर में अरबों लोग कोविड-19 से संक्रमित हो चुके हैं।
You may also like
लखनऊ यूनिट से रवाना होगी ब्रह्मोस की पहली खेप, स्वदेशी रक्षा उत्पादन को मिलेगी नई उड़ान
शी चिनफिंग ने संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन को 80वीं वर्षगांठ पर बधाई पत्र भेजा
नई Maruti Victoris SUV बनी ग्राहकों की पसंद, सिर्फ लॉन्च महीने में 4,261 यूनिट्स पहुंचीं शोरूम तक
सेना ने साइबर स्पेस, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और कॉग्निटिव डोमेन की चुनौतियों से भरा किया युद्धाभ्यास
ये चमत्कारी फल किडनी की सेहत के लिए है रामबाण फल, पोस्ट को शेयर करें अपने जान पहचान वालों के साथ